एक बार की बात है, हिमालय की तलहटी में स्थित एक छोटे से गाँव में रमेश नाम का एक किसान रहता था। रमेश बहुत मेहनती और दयालु था। वह हमेशा दूसरों की मदद करने को तैयार रहता था। गाँव में सभी लोग उसकी प्रशंसा करते थे, लेकिन कुछ लोग उसका मज़ाक उड़ाते और कहते, "दूसरों की मदद करने से तुम्हें क्या मिलेगा?" वे उसे समय बर्बाद करने वाला मानते थे।

रमेश को उनकी बातों का कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसे विश्वास था कि दूसरों की मदद करना सबसे बड़ा पुण्य है, और यही जीवन का असली उद्देश्य है। वह हमेशा किसी न किसी तरीके से दूसरों की मदद करने की कोशिश करता था, चाहे वह छोटी हो या बड़ी बात हो। उसकी सादगी और मददगार स्वभाव ने उसे गाँव के लोगों के बीच एक आदर्श बना दिया था।

एक दिन गाँव में अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। बारिश इतनी तेज़ थी कि पास की नदी में बाढ़ आ गई और गाँव के कई घर डूबने लगे। लोग घबराकर अपने घरों से बाहर भागने लगे। गाँव के कई परिवारों के पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था। इस आपदा के समय लोग डर और असमंजस में थे।

रमेश ने स्थिति को समझा और तुरंत अपनी बैलगाड़ी निकालकर सभी को सुरक्षित स्थान पर ले जाने की कोशिश की। वह जानता था कि यह समय अकेले काम करने का नहीं, बल्कि सबको मिलकर मदद करने का है। उसने अपने घर को भी एक अस्थायी शरणस्थल में बदल दिया, जहाँ लोग बारिश से बच सकते थे। वह खुद भूखा रहा, लेकिन उसने सुनिश्चित किया कि हर व्यक्ति को खाना और आराम करने की जगह मिले।

गाँव के कुछ लोग जो पहले उसकी मदद करने की आदत का मज़ाक उड़ाते थे, अब उसकी प्रशंसा कर रहे थे। उनमें से एक व्यक्ति, मोहन, ने कहा, "हम हमेशा रमेश को बेवजह दयालु होने के लिए ताना मारते थे, लेकिन आज उसकी दया और मदद ने हमें बचा लिया।" मोहन ने और अन्य लोग भी यह समझ लिया कि रमेश का परिश्रम और सद्भावना ही उस मुश्किल घड़ी में सबकी मदद कर सका।

जैसे-जैसे बाढ़ की स्थिति थमी और गाँव के लोग अपने घरों को लौटने लगे, उन्होंने रमेश का धन्यवाद किया। सभी ने उसे सम्मान देना शुरू किया। गाँव के बुजुर्गों ने एक बैठक आयोजित की और रमेश को सम्मानित किया। बुजुर्गों ने कहा, "रमेश, तुमने हमें सिखाया है कि दूसरों की मदद करना ही सच्चा धर्म है। अगर तुमने हमारी मदद न की होती, तो हम सब मुश्किल में पड़ जाते।"

रमेश ने विनम्रता से कहा, "मुझे कोई विशेष सम्मान नहीं चाहिए। मैंने सिर्फ वही किया जो इंसानियत सिखाती है। हमें एक-दूसरे की मदद के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। दूसरों की मदद करना हमें आंतरिक खुशी और संतोष देता है।" रमेश की बातें गाँववालों के दिलों में गहरे उतर गईं।

उस दिन के बाद गाँव के लोगों ने दूसरों की मदद करने का महत्व समझा। रमेश का जीवन सभी के लिए प्रेरणा बन गया, और गाँव में एक नई सोच की शुरुआत हुई। अब हर कोई जरूरतमंदों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता था। लोग यह समझने लगे कि मदद करना न केवल समाज की भलाई करता है, बल्कि यह व्यक्तिगत संतोष का भी स्रोत है।

एक दिन, गाँव में एक और संकट आया। गाँव के पास के जंगल में एक आग लग गई, और वह जल्दी से फैलने लगी। गाँव के लोग डर गए थे, लेकिन रमेश ने बिना किसी संकोच के आग बुझाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी। उसने गाँववालों को आग बुझाने के लिए पानी लाने और एकजुट होने का आदेश दिया। अंत में, सबकी मेहनत से आग बुझाई जा सकी। इस बार भी रमेश की मदद से गाँव बच गया।

गाँव के लोग अब पहले से ज्यादा उसे सम्मान देने लगे थे। वे जान गए थे कि रमेश का दिल सच्चे उद्देश्य से भरा हुआ है। वह न केवल संकट के समय में दूसरों की मदद करता था, बल्कि हर स्थिति में एक सहायक हाथ बढ़ाने के लिए तैयार रहता था। गाँव की महिलाएँ, बच्चे और बूढ़े भी उसकी मदद की सराहना करते थे।

रमेश का जीवन और उसका काम गाँव में एक मिसाल बन गए। लोग कहते थे कि रमेश ने उन्हें सिखाया कि जीवन में सबसे बड़ा गुण होता है - दूसरों की मदद करना। यह न केवल दूसरों की जिंदगी को बेहतर बनाता है, बल्कि हमारी अपनी जिंदगी भी ज्यादा संतुष्ट और खुशहाल बन जाती है। उसका जीवन अब गाँव में एक ऐसे आदर्श की तरह था, जिसे हर कोई अपनाना चाहता था।

उसका यह विचार धीरे-धीरे पूरे गाँव में फैल गया कि समाज में सभी को मिलजुल कर रहना चाहिए और जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। रमेश का जीवन यही दर्शाता था कि वास्तविक मानवता सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि कार्यों में होती है। जब भी किसी को उसकी मदद की जरूरत पड़ी, रमेश वहाँ मौजूद था।

सीख: दूसरों की मदद करना केवल उन्हें राहत नहीं देता, बल्कि यह हमें आत्मिक संतोष और समाज में सच्चा सम्मान दिलाता है। मदद करना इंसानियत का सबसे बड़ा धर्म है। जब हम दूसरों के लिए जीते हैं, तो हमारे जीवन का उद्देश्य पूरा होता है। किसी की मदद करना हमें अपार खुशियाँ और शांति प्रदान करता है।