यह एक ठंडी और अंधेरी रात थी, जब अजय दिल्ली से अपने गाँव लौटने के लिए ट्रेन में चढ़ा। वह थका हुआ था और यात्रा के अंत तक पहुंचने का इंतजार कर रहा था। ट्रेन की खिड़कियों से बाहर का दृश्य एक अजीब सी नीरवता में डूबा हुआ था। खामोशी और अंधेरा जैसे समा गए थे, और ट्रेन की आवाज़ सिर्फ एक अकेली ध्वनि बनकर रह गई थी।

अजय को यह रास्ता कई बार तय करना पड़ा था, लेकिन आज कुछ अलग महसूस हो रहा था। ट्रेन की बत्तियाँ बार-बार मंद हो रही थीं और बीच-बीच में ट्रेन की गति भी घट रही थी। एक-दो बार तो उसने सोचा कि कहीं यह ट्रेन किसी खामोश स्टेशन पर तो नहीं रुकने वाली। लेकिन जैसे-जैसे वह सोचता, ट्रेन फिर से तेज़ी से दौड़ने लगती।

ट्रेन का एक कारखाना चुपचाप बंद था, और अजय के पास बैठे यात्री की खामोशी ने उसे थोड़ा और बेचैन कर दिया। अचानक, उसके सामने एक व्यक्ति दिखाई दिया। वह सफेद शर्ट और काले पैंट में था, और उसकी आंखों में कुछ रहस्य छिपा हुआ था। वह अजय के पास बैठते हुए बोला, "कहाँ जा रहे हो, भाई?"

अजय ने सिर झुकाते हुए जवाब दिया, "गाँव, बस आधे घंटे और।" लेकिन व्यक्ति की नज़रे उसे जज्ब कर रही थीं। उसने फिर से पूछा, "क्या तुम जानते हो, ये ट्रेन कहाँ जा रही है?" अजय थोड़ा चौंका और बोला, "यह दिल्ली से गाँव तक जाती है।"

व्यक्ति हंसते हुए बोला, "क्या तुम सच में यह समझते हो कि यह ट्रेन कहीं जा रही है?" अजय को उसकी बात कुछ अजीब लगी, लेकिन उसने जवाब नहीं दिया। उसकी नज़र उस आदमी पर टिकी रही, जो अब धीरे-धीरे खड़ा हो गया और ट्रेन के बाहर की ओर देखने लगा। अचानक ट्रेन के अंदर सन्नाटा छा गया।

जैसे ही अजय ने अपनी आँखें उस व्यक्ति से हटाई, ट्रेन का इंजन एक तेज़ आवाज़ के साथ बंद हो गया। सभी बत्तियाँ बंद हो गईं, और ट्रेन ने रुकते हुए एक अजीब सी खौफनाक खामोशी में घेर लिया। वह व्यक्ति अब गायब हो चुका था। अजय ने इधर-उधर देखा, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आया।

घबराया हुआ अजय खड़ा हुआ और ट्रेन की खिड़की से बाहर झांकने लगा। लेकिन कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। जैसे ही उसने खिड़की का कांच साफ किया, उसकी आँखों के सामने एक धुंधला सा चेहरा नज़र आया। वह उस व्यक्ति का चेहरा था, लेकिन वह किसी और की छाया में परिवर्तित हो चुका था।

अजय ने दहशत में आकर ट्रेन का दरवाज़ा खोला, और वहाँ खड़ा हुआ किसी और मुसाफिर को देखा। वह व्यक्ति अब खड़ा होकर कह रहा था, "यह ट्रेन अब नहीं चलेगी। तुम अकेले रह गए हो, अजय।"

अचानक अजय की आँखों में अंधेरा छा गया और वह अपनी जगह से उठने का प्रयास करता है, लेकिन वह महसूस करता है कि उसकी टांगें बेजान हो चुकी हैं। उसने डरते हुए बाहर देखा, और ट्रेन का दृश्य अजीब हो गया था। उसने सुना कि ट्रेन अब कभी नहीं चलेगी। वह व्यक्ति जो उसे पीछे छोड़ चुका था, अब उसका सामना कर रहा था—"तुम रात के आखिरी मुसाफिर हो।"

ट्रेन की खामोशी अजय को और भी भयभीत कर रही थी। वह लगातार सोच रहा था कि क्या यह सब उसकी कोई गलतफहमी है या फिर सच में कुछ अजीब हो रहा है। उसने घबराकर ट्रेन के दरवाजे को जोर से धक्का दिया, लेकिन दरवाजा नहीं खुला। उसने खिड़की से बाहर देखा, लेकिन अब वह सब कुछ अलग था। अंधेरा गहरा हो चुका था, और ट्रेन के चारों ओर खामोशी छाई हुई थी।

जैसे ही अजय ने बाहर देखा, उसने देखा कि ट्रेन के पटरियों के दोनों ओर एक काली साया जैसी चीज़ दौड़ रही थी। वह चीज़ अजय के पास आ रही थी। अजय की धड़कन तेज़ हो गई, और उसे एहसास हुआ कि वह किसी खौफनाक मुसीबत में फंस चुका है। उसके शरीर में एक ठंडक दौड़ रही थी और उसकी आँखों के सामने वह अजनबी व्यक्ति फिर से आ खड़ा हुआ।

"तुम अब नहीं बच सकोगे," वह व्यक्ति बोला। उसकी आवाज़ में एक खौफनाक सन्नाटा था, जैसे वह किसी जिंदा इंसान नहीं बल्कि किसी रहस्यमयी शक्ति का प्रतीक हो। अजय ने डरते हुए उससे पूछा, "तुम कौन हो? क्या चाहते हो मुझसे?" लेकिन व्यक्ति का चेहरा अब और भी डरावना हो चुका था।

"मैं वही हूँ जो ट्रेन को चलाने का काम करता हूँ," व्यक्ति बोला। "लेकिन यह ट्रेन अब अपने पुराने रास्ते से भटक चुकी है। अब यह तुम्हारे साथ एक नया रास्ता तय करेगी।" अजय ने और भी घबराकर उससे पूछा, "यह रास्ता कहाँ जाएगा?" लेकिन उस व्यक्ति ने सिर्फ एक डरावनी हंसी के साथ जवाब दिया, "यह रास्ता अब किसी की भी मंजिल नहीं है।"

अजय अब पूरी तरह से डर से लकवाग्रस्त था। उसकी सोचने की क्षमता खत्म हो चुकी थी। ट्रेन का वातावरण अब किसी भूतिया दुनिया जैसा हो चुका था। हर चीज़ धुंधली और अजीब सी लग रही थी। वह व्यक्ति अब अचानक से गायब हो गया था, और उसके बाद अजय को महसूस हुआ कि वह अकेला रह गया था। ट्रेन बिल्कुल खामोश थी, जैसे वह कुछ सुन ही नहीं पा रही हो।

अजय को अब यह समझ में आ गया था कि यह ट्रेन और यह सफर किसी और ही दुनिया से जुड़ा हुआ था। वह व्यक्ति जो उसे डराने आया था, वह सिर्फ एक संकेत था। उस संकेत का मतलब था कि अजय अब उस खौफनाक सफर का हिस्सा बन चुका था। और जैसे ही अजय ने यह समझा, ट्रेन फिर से एक अजीब सी आवाज़ के साथ चल पड़ी।

अब ट्रेन और भी तेज़ी से दौड़ने लगी थी, लेकिन अजय का दिल धड़कते हुए उसकी धड़कन के साथ तेज़ हो रहा था। वह अब तक यह समझ चुका था कि यह ट्रेन किसी सामान्य यात्रा का हिस्सा नहीं थी। यह उस रहस्यमय सफर का हिस्सा थी, जिसे हर मुसाफिर को एक दिन झेलना पड़ता था। अजय का सफर खत्म नहीं हुआ था, बल्कि एक और खौफनाक सफर शुरू हो चुका था।

इस घटना के बाद से अजय का कुछ पता नहीं चला। ट्रेन आज भी उसी रास्ते पर चलती है, लेकिन अजय की सवारी उस अजीब सफर से कभी पूरी नहीं हो सकी। उसने जो यात्रा शुरू की थी, वह अब एक अनजानी राह पर चली गई थी। वह जो भी मुसाफिर था, वह अब कभी नहीं लौट सका।

सीख: कभी-कभी अकेले सफर करना हमें उन रहस्यों से रूबरू करवा सकता है, जिनका सामना हम न चाहते हुए भी कर लेते हैं। अजनबी रास्ते और मुसाफिर कभी-कभी हमें ऐसी हकीकत से मिलवाते हैं, जिसे हम कभी नहीं समझ पाते।